१२१६. जिस दिन हम दोनों एक हुए उस दिन की कहानी क्या कहिये
जिस दिन हम दोनों एक हुए उस दिन की कहानी क्या कहिये
एक नूर सा बरपा है रुख पर लफ़्ज़ों की ज़ुबानी क्या कहिये
वो सामने जब आ जाते थे, दिल की धड़कन बढ़ जाती थी
जज़्बात न रहते थे बस में वो ज़ोर-ए-जवानी क्या कहिये
एक प्यार की शय से बढ़ कर कुछ दुनिया में हमें न वाज़िब था
रखते थे जान हथेली पर, वो दिन तूफ़ानी क्या कहिये
बरसात तो थम भी जाती है, आंखें लेकिन थमतीं ही नहीं
बहती है मोहब्बत अश्कों में, अब इन की रवानी क्या कहिये
मुमकिन ऐसा भी हो पाता कि बीते लमहे जी लेते
रह रह के ख़लिश तड़पाती है, वो याद पुरानी क्या कहिये.
महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश
१२ दिसम्बर २००७
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11 comments:
The ghazal is very nice, but the Hindi font is not formatting the short E and the long E correctly. Maybe, you need to look into this.
wah waqh kya baat hai..
अच्छा लिखा है. ब्लॉग जगत मैं आपका स्वागत है.
नए चिट्ठे का स्वागत!
खूब लिखें, निरन्तर लिखें।
आप की सभी गज़लें यहाँ सँजोई जाएँगी ही ऐसी आशा है।
Bohot sundar rachna hai...." Kya kehne"!
Shubhkamnayon sahit swagat hai!
बहुत सुन्दर रचना। बधाई।
आसान बहुत था तय करना, सदियों का सफर कुछ लम्हों में।
थे दिन भी सुहाने उन दिनों, पर रात सुहानी क्या कहिए।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
अच्छी ग़ज़ल, लिखते रहें
prakashbadal.blogspot.com
ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. खूब लिखें, खूब पढ़ें, स्वच्छ समाज का रूप धरें, बुराई को मिटायें, अच्छाई जगत को सिखाएं...खूब लिखें-लिखायें...
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आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
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अमित के. सागर
(उल्टा तीर)
kya baat hai janab, bahut hee jandar
narayan narayan
आपने बहुत अच्छा लिखा है ।
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लिए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com
मुमकिन ऐसा भी हो पाता कि बीते लमहे जी लेते
रह रह के ख़लिश तड़पाती है, वो याद पुरानी क्या कहिये.
मुमकिन ऐसा हो पायेगा कि बीते लम्हे जी लेंगे
बस खलिश ज़रा तडपती रहे ,यादों की यादें क्या कहिये .
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